बहुत पुरानी है
पिता की एक मात्र निशानी है
यह एक टांगवाली काठ की कुर्सी
नहीं मालूम
पिता के पास यह कुर्सी
कैसे और कहाँ से आयी
पर सुना है
इसी पर बैठ कर समझदार पिता
मेरे भविष्य का नक्शा बनाते थे
घर चलाने का तिलस्मी गणित भी
वे इसी पर बैठ कर हल करते थे
उस नक्शे का
और उस गणित का क्या हुआ
किसी को नहीं मालूम
खो गया
या पिता ने ही कहीं छिपा दिया
कौन जाने
आज तो मेरे पास
न कोई गणित है
और न ही कोई भविष्य
इस देश की तरह
मेरे पास भी
बस एक टांगवाली यह काठ की कुर्सी है
जो कहीं से गली है
कहीं से जली है
मुझे अपने पिता से उत्तराधिकार में मिली है!
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