गालियाँ सुनकर
बदले में गालियाँ नहीं बकता
चिड़ियाँ के बच्चों सा
ताकने लगता है मुँह
झूठ के जंगल में
एक सपना सच का ...
वह आदमी
माथे पर चाँद-सूरज उठाये
निकल पड़ता है गाँव-शहर की राह
उसे ठगना उतना ही सरल है
जितना की वृक्ष से की पत्तियाँ तोड़ना
वह आदमी
जो हमारी दुनिया का सच नहीं
लेकिन सच की एक दुनिया है अनमोल
कैसा होगा ?
कहाँ मिलेगा वह ?
आईना देखते रोज ही सोचता हूँ
कहीं मिल जाए वह आदमी
मुझे एक बार ...
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