कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के साथ चलनेवाला रचनात्मक संवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह संवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। सौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का सम्बन्ध मूल रूप से हृदय से जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि उसका बुद्धि से कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का संतुलित समायोजन रहता है; और उस समायोजन से उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !
धरी-धरी लुट गयी सपनों की टोकरी, मिली नहीं नौकरी। क्या हम कहें कुछ कहा नहीं जाए, जीवन से मौत अच्छी सहा नहीं जाए। झूठे अरमान हुए, सपनें बेइमान हुए, अपने अनजान हुए रहा नहीं जाए। कर गई बाय-बाय मुम्बई की छोकरी ! मिली नहीं नौकरी। धरी-धरी लुट गयी ... कितने जतन किए पूरी की पढ़ाई, फिर भी जमाने में बेकारी हाथ आई। दर-दर की ठोकर खाते, पानी पी भूख मिटाते, पर हम लड़ते ही जाते जीवन की लड़ाई। होकर मजबूर यारों करते हैं जोकरी ! मिली नहीं नौकरी। धरी-धरी लुट गयी ...
बेरोजगारी पर अच्छी चोट की है। बढ़िया रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएं