कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

कुर्सी



बहुत पुरानी है
पिता की एक मात्र निशानी है
यह एक टांगवाली काठ की कुर्सी

नहीं मालूम
पिता के पास यह कुर्सी
कैसे और कहाँ स‌े आयी
पर स‌ुना है
इसी पर बैठ कर स‌मझदार पिता
मेरे भविष्य का नक्शा बनाते थे
घर चलाने का तिलस्मी गणित भी
वे इसी पर बैठ कर हल करते थे

उस नक्शे का 
और उस गणित का क्या हुआ
किसी को नहीं मालूम

खो गया 
या पिता ने ही कहीं छिपा दिया
कौन जाने

आज तो मेरे पास
न कोई गणित है
और न ही कोई भविष्य

इस देश की तरह
मेरे पास भी
बस एक टांगवाली यह काठ की कुर्सी है
जो कहीं स‌े गली है
कहीं स‌े जली है
मुझे अपने पिता स‌े उत्तराधिकार में मिली है!

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