कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

रविवार, 26 सितंबर 2010

गाँव के बच्चे


नींद में बड़बड़ करते हैं
गाँव के बच्चे
स‌पना देख के डरते हैं
गाँव के बच्चे






मिट्टी में लेट-सेट
हँसते हैं खाली पेट
नंगे-नंगे फिरते हैं
गाँव के बच्चे

स‌दियों के भूत-प्रेत
बैठे हैं खेत-खेत
परछाई से लड़ते हैं
गाँव के बच्चे

लालटेन के इर्द-गिर्द
बैठे हैं चुपचुप
जाने क्या पढ़ते हैं
गाँव के बच्चे

आँखों में गड़ते हैं
गाँव के बच्चे




गुरुवार, 23 सितंबर 2010

अच्छे दिनों की उम्मीद पर

बच्चे आखिरी उम्मीद हैं
अच्छे दिनों की

अच्छे दिनों की उम्मीद पर
बच्चे सुबह-सुबह
जा रहे हैं स्कूल

स्कूल के बाहर
एक भरा पूरा दिन
बीत गया बच्चों के इंतजार में

देर शाम
बच्चे लौट रहे हैं घर
थके-हारे ...।



खौफ खाते हुए बच्चे



कहीं न आते न जाते हुए बच्चे
घर भर में
शहर में
खौफ खाते हुए बच्चे

भूले-भूले से
स‌बकुछ भूल जाते हुए बच्चे
बहुत कठिन स‌मय में
असमय स्कूल जाते हुए बच्चे

डाँटे जाते हुए बच्चे
चाँटे खाते हुए बच्चे
कहीं गीता
कहीं कुरान में
बाँटे जाते हुए बच्चे




Falling



What he said
is all lie

What he wrote
is all lie

What he thought
is all lie

The whole life he lived
was just a fake
He has nothing to give
He has nothing to take.

The money --
only money is flying here
through out the sky
and the man --
poor man is falling down
and down and down ...




मतलब, तुमसे नहीं मिल स‌कता









तुम्हारी याद लिए
अचानक खुलती हैं आंखें                                                                                      

खीझ स‌नी सुबह को
चाय के सा‌थ जल्दी-जल्दी सु‌ड़कता
सो‌चता हूँ तुम्हारे सा‌थ हुई कल की बातें ...
दिन काफी चढ़ आया है !

रात भर दु:स्वप्न में उलझी
अपनी अस्त-व्यस्त आँखों में
मुश्किल से ढूढ़ पाता हूँ
तुम्हारा हँसता चेहरा ...
नल में आज भी पानी नहीं है !

छत की मुंडेर पर
लगा है कौओं का जमघट
कांव-काँव ... काँव-कांव ... काँ.....व..
ढीठ-ढीठ
हिलती है काली पीठ
खुलती है काली चोंच
बोलती है जाली सोच
आज हड़ताल है !
मतलब, तुमसे नहीं मिल स‌कता

टूथ-ब्रश बुरी तरह खिया गया है
बचा-खुचा टूथ-पेस्ट खुरचता सोचता हूँ
तुम्हें कल ' कुछ अच्छा सा ' भेंट करुँगा
या कि एक कविता ही लिखूँगा
तुम्हारे लिए ...

नाश्ता कर लो !
पुकारती है माँ

एकाएक मुस्कुरा पड़ता हूँ
देखता हूँ लाल-लाल फूलों से लद गया है गुलमोहर
कल तुमसे जब मिलूँगा
ढेर सारी बाते करूँगा तुम्हें खूब प्यार करूँगा ...
क्या सोच रहे हो ?
पूछते हैं पिताजी

इम्तिहान सिर पर है
कमरे में बिखरी हैं किताबें
साहित्य...विज्ञान... राजनीति...
जिंदगी की तरह कुछ भी अपनी जगह नहीं है
इधर की उधर
उधर की इधर !
वहीं बीच में
तुम्हारा दिया स्वर्ण-चम्पा का एक ताजा फूल भी है
प्रेम..स्पर्श..सुगंध..सपने..नौकरी..
संघर्ष..बेकारी...मौत !
स‌बकुछ कितना अजीब है !!

नहाते क्यों नहीं ?
पूछते हैं पिताजी

खाते क्यों नहीं ?
पूछते हैं पिताजी

पढ़ते क्यों नहीं ?
पूछते हैं पिताजी
उन्हें क्या मालूम कि आज हड़ताल है
        मतलब, तुमसे नहीं मिल स‌कता


बहुत दिन हुए




बहुत दिन हुए
कोई चिट्ठी नहीं आई
कोई मित्र नहीं आया दरवाजे पता पूछते
चिल्लाते नाम ...
                                                                                                                      
बहुत दिन हुए
दाखिल नहीं हुई कोई नन्ही सी चिड़िया
तिनका-तिनका जोड़ा नहीं घर

खिड़कियों से होकर किसी सुबह
किसी शाम
उतरा नहीं आकाश
बहुत दिन हुए भूल गया
जाने क्या था उस लड़की का नाम !

बहुत दिन हुए
करता रहा चाकरी
गँवाता रहा उम्र
कमाता रहा रुपए

बहुत दिन हुए
छोड़ दिया लड़ना

बहुत दिन हुए
भूल गया जीना



बुधवार, 22 सितंबर 2010

और वह मर गया



उसने चाहा था घर
बना मकान
खप गयी जिंदगी

वह सुखी होना चाहता था
इसलिए मारता रहा मच्छर, मक्खी, तिलचट्टे ...
फांसता रहा चूहे

स‌फर में
जैसे डूबा रहे स‌स्ते उपन्यास में कोई
कि यूँ ही बेमतलब कट गई उम्र
अनजान किसी रेलवे स्टेशन‌ पर
कोई कुल्हड़ में पिये फीकी चाय
और भूल जाए

वह भूल गया जवानी के स‌पने,
आदर्श, क्रांतिकारी योजनाएँ ...
उस लड़की का चेहरा

विग्यापन के बाजार में
वह बिकता रहा
लगातार बेचता रहा --
अपने हिस्से की धूप
अपने हिस्से की चाँदनी

और मर गया !


वह आदमी




गालियाँ स‌ुनकर
बदले में गालियाँ नहीं बकता
चिड़ियाँ के बच्चों स‌ा
ताकने लगता है मुँह

झूठ के जंगल में
एक स‌पना स‌च का ...
वह आदमी
माथे पर चाँद-सूरज उठाये
निकल पड़ता है गाँव-शहर की राह

उसे ठगना उतना ही स‌रल है
जितना की वृक्ष स‌े की पत्तियाँ तोड़ना

वह आदमी
जो हमारी दुनिया का स‌च नहीं
लेकिन स‌च की एक दुनिया है अनमोल

कैसा होगा ?
कहाँ मिलेगा वह ?

आईना देखते रोज ही स‌ोचता हूँ
कहीं मिल जाए वह आदमी
मुझे एक बार ...




मंडीनामा



( एक )

मरते दिल का हाल बेचो
बिकता है अकाल बेचो
भूत-प्रेत-बेताल बेचो
पश्चिम का जंजाल बेचो
अपने हर सवाल बेचो
सबकुछ है अब माल बेचो

अपनी रोटी-दाल बेचो
बेचो अपनी खाल बेचो

कच्चे-पक्के बाल बेचो
फूले-पिचके गाल बेचो
जो चाहोगे बिक जायेगा
दिन,महीने, साल बेचो

मोजे और रुमाल बेचो
मिक्सी के सुर- ताल बेचो
सेक्सी-सेक्सी चाल बेचो
होगे मालामाल बेचो


( दो )

आओ अपना गला बेच लो
यह भी है एक कला बेच लो
कान बेच लो सस्ते-सस्ते
नाक बेच लो रस्ते-रस्ते
भाव जीभ का बढ़ा हुआ है
अभी बेच लो हंसते-हंसते

करम बेच दो,भरम बेच दो
नरम बेच दो,गरम बेच दो
अपनी सारी शरम बेच दो
बेच सको तो धरम बेच दो

आंत बिक रही,दांत बिक रहे
मंडी में दिन-रात बिक रहे
हाथ-हाथ सब हाथ बिक रहे
रुपये में छह-सात बिक रहे

चट-पट जाओ वोट बेच लो
दादाजी का कोट बेच लो
आदर्शो की गठरी के भी
मिल जायेंगे नोट बेच लो

नोट मिले तो गोली बेचो
नोट मिले तो चोली बेचो
उलटी-सीधी बोली बेचो
बचपन के हमजोली बेचो

लाओ अपनी मूँछ बेच दो
और अगर है पूँछ बेच दो
दाढ़ी है तो दाढ़ी बेचो
अपनी यह बेकारी बेचो
इस मंडी में क्या नहीं बिकता
अपनी स‌ब लाचारी बेचो

अच्छे हो, अच्छाई बेचो
स‌च्चे हो, स‌च्चाई बेचो
लुच्चे हो, तो और भी अच्छा
बेचो लुंगी गंजी कच्छा...


( तीन )

कहीं की मिट्टी
कहीं का पानी
लिखो वही जो बिके कहानी
कविता को कूड़े में डालो
बेचो बचपन और जवानी

अंतर - मंतर जादू - टोना
बरसे रुपया, चाँदी सोना
बरतन - बासन, खाट - बिछौना
बेचो घर का ओना - कोना
बेचो गाँधी चर्खा खद्दर
बेचो चूहे साँप छछुँदर ....

जो है खेती - पत्ती बेचो
देश का रत्ती-रत्ती बेचो

सूरज बेचो
चंदा बेचो
मधु बेचो
मधुछंदा बेचो
इसको बेचो, उसको बेचो
जो मन आए उसको बेचो

आगे बेचो, पीछे बेचो
उपर बेचो, नीचे बेचो
दाँए बेचो, बाँए बेचो
भाई बहनें माएँ बेचो

अहरी बेचो, बहरी बेचो
औरत सुंदर सँवरी बेचो
कानी बेचो, कुबड़ी बेचो
अंधी, लूली , लंगड़ी बेचो
जहाँ कहीं जो ठहरी बेचो
झबरी झक चितकबरी बेचो

अगर बेच लो, मगर बेच लो
सेतमेत में स‌गर बेच लो
ताल तलैया नहर बेच लो
गली मुहल्ला शहर बेच लो
स‌ुबह शाम दोपहर बेच लो

बेचो दक्षिण, वाम बेचो
लीची कटहल आम बेचो
गुल गुलशन गुलफाम बेचो
इसको राधेश्याम बेचो
उसको सीताराम बेचो

बेमतलब का हल्ला - गुल्ला
मूल्य-वूल्य से झारो पल्ला
बेचो कि बिकती है लल्ली
बेचो कि बिकता है लल्ला
मंदिर मसजिद ईश्वर अल्ला
बेचो स‌ब कुछ खुल्लम खुल्ला !