कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

बहुत दिन हुए




बहुत दिन हुए
कोई चिट्ठी नहीं आई
कोई मित्र नहीं आया दरवाजे पता पूछते
चिल्लाते नाम ...
                                                                                                                      
बहुत दिन हुए
दाखिल नहीं हुई कोई नन्ही सी चिड़िया
तिनका-तिनका जोड़ा नहीं घर

खिड़कियों से होकर किसी सुबह
किसी शाम
उतरा नहीं आकाश
बहुत दिन हुए भूल गया
जाने क्या था उस लड़की का नाम !

बहुत दिन हुए
करता रहा चाकरी
गँवाता रहा उम्र
कमाता रहा रुपए

बहुत दिन हुए
छोड़ दिया लड़ना

बहुत दिन हुए
भूल गया जीना



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