कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

बुधवार, 22 सितंबर 2010

और वह मर गया



उसने चाहा था घर
बना मकान
खप गयी जिंदगी

वह सुखी होना चाहता था
इसलिए मारता रहा मच्छर, मक्खी, तिलचट्टे ...
फांसता रहा चूहे

स‌फर में
जैसे डूबा रहे स‌स्ते उपन्यास में कोई
कि यूँ ही बेमतलब कट गई उम्र
अनजान किसी रेलवे स्टेशन‌ पर
कोई कुल्हड़ में पिये फीकी चाय
और भूल जाए

वह भूल गया जवानी के स‌पने,
आदर्श, क्रांतिकारी योजनाएँ ...
उस लड़की का चेहरा

विग्यापन के बाजार में
वह बिकता रहा
लगातार बेचता रहा --
अपने हिस्से की धूप
अपने हिस्से की चाँदनी

और मर गया !


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