( एक )
गांव से
शहर जाता है
गाँव का आदमी
और गाँव वालों के लिए
बन जाता है शहरी बाबू
शहरी बाबू
गाँव आता है कभी-कभी
और
गाँव वालों को
गाँव वालों को
कहता है गँवार ... !
( दो )
गाँव का आदमी
सोचता है
शहर के बारे में
शहर का आदमी
कुछ भी नहीं सोचता किसी के बारे में
गाँव और शहर का आदमी
जिसे
समझता है देश का चिंतक
वह
अक्सर सोचता रहता है
कुछ सोचने के बारे में
( तीन )
गाँव
गाँव होता हैऔर शहरशहर
पर आदमीक्यों आदमी नहीं रहा कहीं भी
( चार )
गाँव के आदमी के लिएशहरउसकी गर्लफ्रेंड होती है
जबकि शहर के आदमी के लिए गाँवउसकी छोड़ी हुई पहली औरतजिसेवह डिवोर्स भी नहीं देता
( पाँच )
गाँव में रहनाअच्छा होता है सेहत के लिएलेकिन ...
जिसे हो जाती है सेहतछोड़ देता है गाँव
( छह )
आजकल बड़ा अच्छा लगता है गाँवफिल्मों में
आजकल बड़ा अच्छा लगता है शहरफिल्मों में
आजकल बड़ा अच्छा लगता है आदमीफिल्मों में
फिर भीजाने क्योंअच्छी नहीं लगती फिल्में आजकल
( सात )
गाँव का सारा दूधपहुँच रहा हैशहर
शहर का सारा गोबर ...जमा है गाँवों में !
( आठ )
( नौ )शहर सेआदमी आता है गाँवऔर खींच ले जाता हैगाय-बकरियों के फोटो ...
गाँव का कुत्ता भीचाहता है फोटो में घुसनाचाहता है निकलना गाँव की सरहद से बाहरकुत्ता जाना चाहता है शहर
मानों शहर जाकरवहकुछ और हो जाएग
गाँव मेंअब नहीं मिलतागाँव जैसा खाना
गाँव मेंअब नहीं बनतेगाँव जैसे मकान
गाँव मेंअब रहता नहीं कोईगाँव जैसा आदमी
फिर भी गाँवमाँ की तरहजोहता रहता है रास्ताउन लोगों काजो बहुत पहले चले गये थे शहर
( दस )
बदल रहा गाँवबदल रहा है शहरबदल रहा है देश
लोगों की जिंदगी कब बदलेगी ?
हर सालदो अक्टूबर के दिनट्रंक से बाहर आते हीपूछता है एक बूढ़ा आदमी
सचमुच अजीब आदमी था वहजीते जी सुधारता रहा सबकोखुद मरकर भी नहीं सुधरा
( ग्यारह )
जो थोड़ा-बहुत पढ़-लिख गयेवेहो गये गाँव के खिलाफ
जो अधिक पढ़े-लिखे थेवेचुपचाप चले गये शहर
जो बहुत ज्यादा पढ़-लिख गयेवेचलते बने देश से बाहर
और जोजरूरत से ज्यादा पढ़ते-लिखते रहेवेबस पढ़ते रहेवेबस लिखते रहे
जिंदगी भरकिया कुछ नहीं
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