कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

रविवार, 21 नवंबर 2010

काल कोठरी : एक

                             
स्कूल यूनिफॉर्म में 
अच्छा लगता है बच्चा
बच्चे को अच्छा नहीं लगता स्कूल यूनिफॉर्म 
वाटर बॉटल, बैग ...

स्कूल बस में 
स‌फर करता बच्चा
स‌ोचता है
बगीचों, फूलों और चिड़ियों के बारे में


तितलियों की तरह 
जीना चाहता है बच्चा

ब्लैक बोर्ड के स‌ामने 
स‌िर झुकाए
खामोश खड़ा बच्चा
खामोशी स‌े 
पीटता रहता है क्लास रूम की दीवारें, छत ...


खटखटाता रहता है
लोहे का बंद दरवाजा

होमवर्क का थैला पीठ पर लादकर
वापस घर के लिए
स्कूल बस में स‌फर करता आठ स‌ाल का बच्चा
अस्सी स‌ाल के बूढ़े की तरह
उदास हो जाता है !


1 टिप्पणी:

  1. सच है ...
    प्रतिस्पर्धा का बोझ बचपन छीन लेता है...!
    वर्तमान स्थिति पर सुन्दर कविता!

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