कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

शनिवार, 27 नवंबर 2010

काल कोठरी : दो

                                    

माँ चाहती है
वह बड़ा होकर डॉक्टर बने

पिता चाहते हैं
वह बड़ा होकर इंजीनियर बने

लेकिन बच्चा, फिलहाल खेलना चाहता है
कुछ देर बाहर
बारिश में भींगना चाहता है

उसे अच्छी लगती है
गाती हुई धरती
उसे अच्छा लगता है 
नाचता हुआ आसमान
उसे अच्छे लगते हैं हरे-हरे पेड़
स‌ड़कों पर चलते लोग बाग
हवा, पानी, धूप ...

होमवर्क की अंधेरी
काल कोठरी में बैठा बच्चा
माँ स‌े
थोड़ी स‌ी स‌ुबह मांगता है

पिता स‌े
थोड़ी स‌ी शाम मांगता है

किताबों-कॉपियों के ढेर में 
दबा हुआ बच्चा
शिक्षक स‌े
थोड़ी स‌ी फुरसत अनाम मांगता है




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