कविता मेरे लिए, मेरे आत्म का, शेष जीवन जगत के स‌ाथ चलनेवाला रचनात्मक स‌ंवाद है। कविता भले शब्दों में बनती हो लेकिन वह स‌ंवाद अंतत: अनुभूति के धरातल पर करती है। इसलिए प्रभाव के स्तर पर कविता चमत्कार की तरह लगती है। इसलिए वह जादू भी है। स‌ौंदर्यपरक, मानवीय, हृदयवान, विवेकशील अनुभूति का अपनत्व भरा जादू। कविता का स‌म्बन्ध मूल रूप स‌े हृदय स‌े जोड़ा जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं स‌मझना चाहिए कि उसका बुद्धि स‌े कोई विरोध होता है। बल्कि वहाँ तो बुद्धि और हृदय का स‌ंतुलित स‌मायोजन रहता है; और उस स‌मायोजन स‌े उत्पन्न विवेकवान मानवीय उर्जा के कलात्मक श्रम और श्रृजन की प्रक्रिया में जो फूल खिलते हैं, वह है कविता ... !

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

बदरी बाबू




कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप स‌े क्यों रहते हैं
रोते-रोते हँस पड़ते हैं,
हँसते-हँसते रोते हैं।

एक हजरिया क्लर्की करते
बीते अनगिन महीने स‌ाल,
कमर झुक गयी, कम दिखती है,
गिर गये स‌िर के स‌ारे बाल।

स‌ोते-सोते जग पड़ते हैं,
जगते-जगते स‌ोते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप स‌े क्यों रहते हैं !

जोड़-तोड़ में कटता जीवन,
जीवन का बढ़ता जंजाल;
स‌ुबह निकलते उत्तर लाने,
शाम को लाते कई स‌वाल।

लम्बी-लम्बी आहें भरते,                                                                                                                                
कभी नहीं कुछ कहते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप स‌े क्यों रहते हैं !

एक जूता, एक धोती-कुर्ता,
चलते रहे एक स‌ी चाल;
बिन ब्याही दो बेटी घर में,
कसता है दु:ख-दर्द का जाल।

स‌िर पर हाथ, हाथ खाली है,
मर-मर कर स‌ब स‌हते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप स‌े क्यों रहते हैं !


3 टिप्‍पणियां:

  1. न जने कितने बदरी बाबूओं की याद आ गई..चुप चुप से दिखते...

    उम्दा रचना!


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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