कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप से क्यों रहते हैं
रोते-रोते हँस पड़ते हैं,
हँसते-हँसते रोते हैं।
एक हजरिया क्लर्की करते
बीते अनगिन महीने साल,
कमर झुक गयी, कम दिखती है,
गिर गये सिर के सारे बाल।
सोते-सोते जग पड़ते हैं,
जगते-जगते सोते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप से क्यों रहते हैं !
जोड़-तोड़ में कटता जीवन,
जीवन का बढ़ता जंजाल;
सुबह निकलते उत्तर लाने,
सुबह निकलते उत्तर लाने,
शाम को लाते कई सवाल।
लम्बी-लम्बी आहें भरते,
कभी नहीं कुछ कहते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप से क्यों रहते हैं !
एक जूता, एक धोती-कुर्ता,
चलते रहे एक सी चाल;
बिन ब्याही दो बेटी घर में,
कसता है दु:ख-दर्द का जाल।
सिर पर हाथ, हाथ खाली है,
मर-मर कर सब सहते हैं...
कौन बताए बदरी बाबू
चुप-चुप से क्यों रहते हैं !
न जने कितने बदरी बाबूओं की याद आ गई..चुप चुप से दिखते...
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
achchha laga padhkar ..........rochak
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएं